डॉ निखिल रंजन अग्रवाल
जातिगत राजनीति अक्सर समाज में विभाजन को बढ़ावा देती है और यह एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण मुद्दा है, जिस पर समाज और राजनीतिक नेताओं के बीच चर्चा होती रहती है । अगर सभी राजनितिक दलों ने ईमानदारी से प्रयास किये होते तो पिछले 75 वर्षों में दलितों और गरीबों का उद्धार हो गया होता |
भारत में जातिगत राजनीति के कुछ दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं:-
समाज में विभाजन: एक मुख्य दोष यह है कि जातिगत राजनीति समाज में विभाजन को बढ़ावा देती है । इससे समाज में समाजिक समानता और एकता के बजाय जातियों के बीच असमानता और संघर्ष को बढ़ावा मिलता है । यह अवस्था समाज के एकाधिक वर्गों के बीच ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती है और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जातिगत आधार पर वोट के बजाय जातिगत समुदायों के बीच खेल खिलाने के तरीके की ओर जाने का कारण बनती है ।
सामाजिक न्याय की अभाव: जातिगत राजनीति के दौरान, आमतौर पर समाज के कुछ जातिगत समुदाय ही उनके अधिकारों की मांग करते हैं, जबकि दूसरे समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है । इससे सामाजिक न्याय की अभाव होती है और समाज में असमानता बढ़ जाती है ।
वोट बैंकिंग: जातिगत राजनीति में एक और दोष है कि राजनीतिक पार्टियां जातिगत समुदायों को अपने वोट बैंक के रूप में देखती हैं और उनके लिए राजनीतिक आरक्षित अधिकारों की मांग करती हैं । इसका परिणामस्वरूप यह होता है कि पार्टियां जातिगत समुदायों को विश्वास दिलाती हैं कि उनके अधिकार केवल उनके समुदाय के लिए हैं, जिससे समाज में और अधिक विभाजन होता है ।
विकास के रास्ते में बाधा: जातिगत राजनीति नेताओं को आरक्षित अधिकारों की मांग करने के लिए वोट बैंक को खुश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, लेकिन यह विकास के माध्यमों को प्रभावित कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रगति में बाधा आ सकती है ।
राजनीति में पार्टियाँ जाति विशेष के पक्ष में काम नहीं करतीं, नेता भावनाओं का दुरुपयोग कर चुनाव में वोट प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करते हैं । अगर ऐसा नहीं होता तो पिछले 75 वर्षों से दलितों का उद्धार क्यों नहीं हुआ | स्वतंत्र के बाद से प्रत्येक राजनीतिक दल गरीबी हटाओ कहते आ रहे है लेकिन आज तक कुछ विशेष नहीं हुआ | आरक्षण के नाम पर मात्र दलित और गरीबों के चुनाव में वोट ले कर भूल जाते है | जिस भी राजनितिक दल और नेताओं ने दलितों और गरीबों के बारे बात की | वही नेता फर्श से अर्श पर पहुंच गया लेकिन दलित और गरीब को कोई लाभ नहीं मिला |